श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 40: श्रीराम की आज्ञा से सुग्रीव का सीता की खोज के लिये पूर्व दिशा में वानरों को भेजना और वहाँ के स्थानों का वर्णन करना  »  श्लोक 51-52
 
 
श्लोक  4.40.51-52 
 
 
तत्र चन्द्रप्रतीकाशं पन्नगं धरणीधरम्।
पद्मपत्रविशालाक्षं ततो द्रक्ष्यथ वानरा:॥ ५१॥
आसीनं पर्वतस्याग्रे सर्वदेवनमस्कृतम्।
सहस्रशिरसं देवमनन्तं नीलवाससम्॥ ५२॥
 
 
अनुवाद
 
  देखो बानरों! उनके शिखर पर चंद्रमा के समान गौरवर्ण वाले अनंत भगवान बैठे हुए दिखाई देंगे। वे सर्पों की जाति के हैं, परंतु उनका स्वरूप देवताओं के समान है। उनके नेत्र प्रफुल्ल कमलदल के समान हैं और शरीर नील वस्त्र से आच्छादित है। अनंतदेव के सहस्र मस्तक हैं और सभी देवता उनके चरणों में नमस्कार करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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