श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 39: श्रीरामचन्द्रजी का सुग्रीव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तथा विभिन्न वानरयूथपतियों का अपनी सेनाओं के साथ  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  4.39.44 
 
 
यथासुखं पर्वतनिर्झरेषु
वनेषु सर्वेषु च वानरेन्द्रा:।
निवेशयित्वा विधिवद् बलानि
बलं बलज्ञ: प्रतिपत्तुमीष्टे॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  वानर-यूथपति लोग उन पर्वतीय जलप्रपातों के आस-पास जहाँ-जहाँ जंगल थे वहाँ अपनी-अपनी सेनाओं को ठीक से सुख-पूर्वक बसा कर तत्पश्चात् समस्त सेनाओं के जानकार सुग्रीव उन सबका पूरा-पूरा ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ हो सके।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे एकोनचत्वारिंश: सर्ग:॥ ३९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें उनतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३९॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.