वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 39: श्रीरामचन्द्रजी का सुग्रीव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तथा विभिन्न वानरयूथपतियों का अपनी सेनाओं के साथ
»
श्लोक 40
श्लोक
4.39.40
आगताश्च निविष्टाश्च पृथिव्यां सर्ववानरा:।
आप्लवन्त: प्लवन्तश्च गर्जन्तश्च प्लवंगमा:।
अभ्यवर्तन्त सुग्रीवं सूर्यमभ्रगणा इव॥ ४०॥
अनुवाद
play_arrowpause
सभी वानर वहाँ पहुँचकर पृथ्वी पर बैठ गए। वो सब उछलते-कूदते और गर्जते हुए सुग्रीव के चारों ओर जमा हो गए, जैसे बादलों के समूह चारों ओर से सूर्य को घेर लेते हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.