श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 39: श्रीरामचन्द्रजी का सुग्रीव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तथा विभिन्न वानरयूथपतियों का अपनी सेनाओं के साथ  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  4.39.40 
 
 
आगताश्च निविष्टाश्च पृथिव्यां सर्ववानरा:।
आप्लवन्त: प्लवन्तश्च गर्जन्तश्च प्लवंगमा:।
अभ्यवर्तन्त सुग्रीवं सूर्यमभ्रगणा इव॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  सभी वानर वहाँ पहुँचकर पृथ्वी पर बैठ गए। वो सब उछलते-कूदते और गर्जते हुए सुग्रीव के चारों ओर जमा हो गए, जैसे बादलों के समूह चारों ओर से सूर्य को घेर लेते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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