श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 39: श्रीरामचन्द्रजी का सुग्रीव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तथा विभिन्न वानरयूथपतियों का अपनी सेनाओं के साथ  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  4.39.37 
 
 
ततो दधिमुख: श्रीमान् कोटिभिर्दशभिर्वृत:।
सम्प्राप्तोऽभिनदंस्तस्य सुग्रीवस्य महात्मन:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् प्रभु श्री दधिमुख दस करोड़ वानरों के साथ गर्जना करते हुए महात्मा सुग्रीव के पास किष्किन्धा पधारे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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