श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 39: श्रीरामचन्द्रजी का सुग्रीव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तथा विभिन्न वानरयूथपतियों का अपनी सेनाओं के साथ  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  4.39.15 
 
 
तत: काञ्चनशैलाभस्ताराया वीर्यवान् पिता।
अनेकैर्बहुसाहस्रै: कोटिभि: प्रत्यदृश्यत॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् तारा के पिता, जिनका शरीर सुवर्णशैल के समान सुन्दर और विशाल था, वे वहाँ अनेक सहस्र कोटि वानरों के साथ उपस्थित देखे गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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