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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 37: सुग्रीव का हनुमान् जी को वानरसेना के संग्रह के लिये दोबारा दूत भेजने की आज्ञा देना, समस्त वानरों का किष्किन्धा के लिये प्रस्थान
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श्लोक 32
श्लोक
4.37.32
तस्माच्च यज्ञायतनात् पुष्पाणि सुरभीणि च।
आनिन्युर्वानरा गत्वा सुग्रीवप्रियकारणात्॥ ३२॥
अनुवाद
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वहाँ उस यज्ञ-मण्डप से वानरों ने सुगन्धित पुष्प भी ले आये ताकि उन पुष्पों से सुग्रीव प्रसन्न हो जायें।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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