श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 37: सुग्रीव का हनुमान् जी को वानरसेना के संग्रह के लिये दोबारा दूत भेजने की आज्ञा देना, समस्त वानरों का किष्किन्धा के लिये प्रस्थान  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  4.37.30 
 
 
तदन्नसम्भवं दिव्यं फलमूलं मनोहरम्।
य: कश्चित् सकृदश्नाति मासं भवति तर्पित:॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  उस अन्न से उत्पन्न हुए उस दिव्य और मनोहर फल-मूल को जो कोई एक बार खा लेता था, वह एक महीने तक उससे तृप्त बना रहता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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