वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 37: सुग्रीव का हनुमान् जी को वानरसेना के संग्रह के लिये दोबारा दूत भेजने की आज्ञा देना, समस्त वानरों का किष्किन्धा के लिये प्रस्थान
»
श्लोक 25
श्लोक
4.37.25
क्षीरोदवेलानिलयास्तमालवनवासिन:।
नारिकेलाशनाश्चैव तेषां संख्या न विद्यते॥ २५॥
अनुवाद
play_arrowpause
तट पर और तमाल नामक वनों में नारियल खाने वाले वानर इतनी अधिक संख्या में थे कि उन्हें गिनना असंभव था।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.