श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 37: सुग्रीव का हनुमान् जी को वानरसेना के संग्रह के लिये दोबारा दूत भेजने की आज्ञा देना, समस्त वानरों का किष्किन्धा के लिये प्रस्थान  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  4.37.21 
 
 
अस्तं गच्छति यत्रार्कस्तस्मिन् गिरिवरे रता:।
संतप्तहेमवर्णाभास्तस्मात् कोटॺो दश च्युता:॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  जहाँ सूर्य अस्त होता है, उस श्रेष्ठ पर्वत पर निवास करने वाले दस करोड़ वानर, जिनका रंग तपाए हुए सोने के समान चमकीला था, वहाँ से किष्किन्धा के लिए निकल पड़े।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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