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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 37: सुग्रीव का हनुमान् जी को वानरसेना के संग्रह के लिये दोबारा दूत भेजने की आज्ञा देना, समस्त वानरों का किष्किन्धा के लिये प्रस्थान
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श्लोक 17
श्लोक
4.37.17
ते पदं विष्णुविक्रान्तं पतत्त्रिज्योतिरध्वगा:।
प्रयाता: प्रहिता राज्ञा हरयस्तु क्षणेन वै॥ १७॥
अनुवाद
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राजा की आज्ञा पाकर वे सब वानर तुरंत आकाश में उड़ चले, जैसे पक्षी और नक्षत्र अंतरिक्ष में उड़ते हैं। वे वानर क्षण भर में ही अपने गंतव्य की ओर बढ़ चले।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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