श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 35: तारा का लक्ष्मण को युक्तियुक्त वचनों द्वारा शान्त करना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  4.35.9 
 
 
देहधर्मगतस्यास्य परिश्रान्तस्य लक्ष्मण।
अवितृप्तस्य कामेषु राम: क्षन्तुमिहार्हति॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण! आहार, निद्रा और मैथुन आदि देह के गुण हैं, जो पशुओं में भी समान रूप से पाए जाते हैं। इन गुणों में आसक्त होकर सुग्रीव पहले से ही बहुत समय तक दुःख भोग कर थक चुके थे और उदास थे। अब भगवान श्रीराम की कृपा से उन्हें जो काम-भोग प्राप्त हुए हैं, उनसे भी उनकी अभी तक तृप्ति नहीं हुई है (इसीलिए उनसे कुछ असावधानी हो गई)। इसलिए परम कृपालु श्रीरघुनाथजी को यहाँ उनका अपराध क्षमा करना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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