श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 35: तारा का लक्ष्मण को युक्तियुक्त वचनों द्वारा शान्त करना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  4.35.8 
स हि प्राप्तं न जानीते कालं कालविदां वर:।
विश्वामित्रो महातेजा: किं पुनर्य: पृथग्जन:॥ ८॥
 
 
अनुवाद
जब काल के ज्ञानियों में श्रेष्ठ महामना विश्वामित्र भी सांसारिक सुखों में आसक्त होकर काल का ज्ञान खो बैठे, तब अन्य कोई सामान्य प्राणी कैसे काल को जान सकता है?॥8॥
 
When even the most illustrious Visvamitra, the best amongst those who have knowledge of time, lost the knowledge of time after becoming attached to worldly pleasures, then how can any other ordinary creature remain aware of it?॥ 8॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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