श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 35: तारा का लक्ष्मण को युक्तियुक्त वचनों द्वारा शान्त करना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  4.35.6 
 
 
सुदु:खशयित: पूर्वं प्राप्येदं सुखमुत्तमम्।
प्राप्तकालं न जानीते विश्वामित्रो यथा मुनि:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  पहले इन्होंने बहुत दुःख उठाया है। अब यह उत्तम सुख प्राप्त करके इसमें ऐसे लीन हो गए कि उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहा कि उन्हें यह सुख कब प्राप्त हुआ था। यह स्थिति ठीक उसी प्रकार की है जैसे विश्वामित्र मुनि मेनका में आसक्त होने के कारण समय का ध्यान ही खो बैठे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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