वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 35: तारा का लक्ष्मण को युक्तियुक्त वचनों द्वारा शान्त करना
»
श्लोक 12
श्लोक
4.35.12
प्रसादये त्वां धर्मज्ञ सुग्रीवार्थं समाहिता।
महान् रोषसमुत्पन्न: संरम्भस्त्यज्यतामयम्॥ १२॥
अनुवाद
play_arrowpause
धर्मज्ञ! सुग्रीव के लिए मैं अत्यंत एकाग्र चित्त से आपसे प्रार्थना करती हूँ। आप रोष के वशीभूत होकर इस भयंकर विद्रोह को त्याग दें।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.