श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 35: तारा का लक्ष्मण को युक्तियुक्त वचनों द्वारा शान्त करना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  4.35.12 
 
 
प्रसादये त्वां धर्मज्ञ सुग्रीवार्थं समाहिता।
महान् रोषसमुत्पन्न: संरम्भस्त्यज्यतामयम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  धर्मज्ञ! सुग्रीव के लिए मैं अत्यंत एकाग्र चित्त से आपसे प्रार्थना करती हूँ। आप रोष के वशीभूत होकर इस भयंकर विद्रोह को त्याग दें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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