वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 35: तारा का लक्ष्मण को युक्तियुक्त वचनों द्वारा शान्त करना
»
श्लोक 11
श्लोक
4.35.11
सत्त्वयुक्ता हि पुरुषास्त्वद्विधा: पुरुषर्षभ।
अविमृश्य न रोषस्य सहसा यान्ति वश्यताम्॥ ११॥
अनुवाद
play_arrowpause
पुरुषवर! तुम्हारे जैसे शांत स्वभाव वाले सत्त्वगुण-संपन्न पुरुष आवेश में आकर बिना सोचे-समझे रौद्र रुप नहीं धारण करते।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.