नरश्रेष्ठ! जिस शरीर में उत्पन्न हुए काम का असहनीय बल होता है, उससे मैं भी परिचित हूँ। साथ ही, काम के वशीभूत होकर सुग्रीव किसमें आसक्त हो रहे हैं, इससे भी मैं अवगत हूँ। वहीं, यह भी मैं जानती हूँ कि काम के कारण सुग्रीव का मन आजकल किसी दूसरे कार्य में नहीं लगता है।