न कोपकाल: क्षितिपालपुत्र
न चापि कोप: स्वजने विधेय:।
त्वदर्थकामस्य जनस्य तस्य
प्रमादमप्यर्हसि वीर सोढुम्॥ ५१॥
अनुवाद
वीर राजकुमार! क्रोध करने का यह समय नहीं है। अपने ही लोगों पर भी क्रोध नहीं करना चाहिए। सुग्रीव के मन में सदैव आपका कार्य सिद्ध करने की इच्छा रहती है। अतः यदि उनसे कोई भूल भी हो जाए तो आपको उसे क्षमा करना चाहिए।