श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 33: लक्ष्मण का सुग्रीव के महल में क्रोधपूर्वक धनुष को टंकारना, सुग्रीव का तारा को उन्हें शान्त करने के लिये भेजना तथा तारा का समझा-बुझाकर उन्हें अन्तःपुर में ले आना  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  4.33.42 
 
 
स तस्या वचनं श्रुत्वा सान्त्वपूर्वमशङ्कित:।
भूय: प्रणयदृष्टार्थं लक्ष्मणो वाक्यमब्रवीत्॥ ४२॥
 
 
अनुवाद
 
  तारा के इस वचन में ढाढ़स देने वाली बातें थीं। उसमें बहुत ही प्यार से भरे दिल की भावना प्रकट की गई थी। उसे सुनकर लक्ष्मण के मन की आशंका दूर हो गई। वे कहने लगे—।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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