श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 33: लक्ष्मण का सुग्रीव के महल में क्रोधपूर्वक धनुष को टंकारना, सुग्रीव का तारा को उन्हें शान्त करने के लिये भेजना तथा तारा का समझा-बुझाकर उन्हें अन्तःपुर में ले आना  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  4.33.39 
 
 
स तां समीक्ष्यैव हरीशपत्नीं
तस्थावुदासीनतया महात्मा।
अवाङ्मुखोऽभून्मनुजेन्द्रपुत्र:
स्त्रीसंनिकर्षाद् विनिवृत्तकोप:॥ ३९॥
 
 
अनुवाद
 
  वानरराज की पत्नी तारा को देखते ही राजकुमार महात्मा लक्ष्मण बहुत शांत हो गए और अपना सिर झुका लिया। स्त्री के करीब आने से उनका क्रोध दूर हो गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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