श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 33: लक्ष्मण का सुग्रीव के महल में क्रोधपूर्वक धनुष को टंकारना, सुग्रीव का तारा को उन्हें शान्त करने के लिये भेजना तथा तारा का समझा-बुझाकर उन्हें अन्तःपुर में ले आना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  4.33.37 
 
 
त्वया सान्त्वैरुपक्रान्तं प्रसन्नेन्द्रियमानसम्।
तत: कमलपत्राक्षं द्रक्ष्याम्यहमरिंदमम्॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम्हारे द्वारा मधुर वचनों से सान्त्वना दिए जाने पर उनके मन और इन्द्रियों के शांत एवं प्रसन्न हो जाने पर, मैं उन शत्रुओं के नाशक कमल-नेत्रों वाले लक्ष्मण का दर्शन करूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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