वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 33: लक्ष्मण का सुग्रीव के महल में क्रोधपूर्वक धनुष को टंकारना, सुग्रीव का तारा को उन्हें शान्त करने के लिये भेजना तथा तारा का समझा-बुझाकर उन्हें अन्तःपुर में ले आना
»
श्लोक 37
श्लोक
4.33.37
त्वया सान्त्वैरुपक्रान्तं प्रसन्नेन्द्रियमानसम्।
तत: कमलपत्राक्षं द्रक्ष्याम्यहमरिंदमम्॥ ३७॥
अनुवाद
play_arrowpause
तुम्हारे द्वारा मधुर वचनों से सान्त्वना दिए जाने पर उनके मन और इन्द्रियों के शांत एवं प्रसन्न हो जाने पर, मैं उन शत्रुओं के नाशक कमल-नेत्रों वाले लक्ष्मण का दर्शन करूँगा।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.