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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 33: लक्ष्मण का सुग्रीव के महल में क्रोधपूर्वक धनुष को टंकारना, सुग्रीव का तारा को उन्हें शान्त करने के लिये भेजना तथा तारा का समझा-बुझाकर उन्हें अन्तःपुर में ले आना
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श्लोक 32
श्लोक
4.33.32
किं नु रुट्कारणं सुभ्रु प्रकृत्या मृदुमानस:।
सरोष इव सम्प्राप्तो येनायं राघवानुज:॥ ३२॥
अनुवाद
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सुंदरी! इनके रोष का कारण क्या हो सकता है? जिस कारण से कमल की कोमलता के समान हृदय वाले यह श्री राम के अनुज लक्ष्मण जी यहाँ कुछ नाराज होकर आए हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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