श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 33: लक्ष्मण का सुग्रीव के महल में क्रोधपूर्वक धनुष को टंकारना, सुग्रीव का तारा को उन्हें शान्त करने के लिये भेजना तथा तारा का समझा-बुझाकर उन्हें अन्तःपुर में ले आना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  4.33.30 
 
 
अङ्गदेन समाख्यातो ज्यास्वनेन च वानर:।
बुबुधे लक्ष्मणं प्राप्तं मुखं चास्य व्यशुष्यत॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  अंगद ने उन्हें पहले ही उनके (लक्ष्मण के) आगमन के समाचार सुना दिए थे। अब धनुष की टंकार के नाद से वानर सुग्रीव को प्रत्यक्ष अनुभव हो गया कि लक्ष्मण ने यहाँ अवश्य पदार्पण कर दिया है। तब तो उनका मुँह सूख गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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