श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 33: लक्ष्मण का सुग्रीव के महल में क्रोधपूर्वक धनुष को टंकारना, सुग्रीव का तारा को उन्हें शान्त करने के लिये भेजना तथा तारा का समझा-बुझाकर उन्हें अन्तःपुर में ले आना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  4.33.25 
 
 
कूजितं नूपुराणां च काञ्चीनां नि:स्वनं तथा।
स निशम्य तत: श्रीमान् सौमित्रिर्लज्जितोऽभवत्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  नूपुरों की झंकार और करधनी की खनखनाहट सुनकर श्रीराम लज्जित हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि उन्होंने किसी दूसरी स्त्री पर नज़र रखी है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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