श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 33: लक्ष्मण का सुग्रीव के महल में क्रोधपूर्वक धनुष को टंकारना, सुग्रीव का तारा को उन्हें शान्त करने के लिये भेजना तथा तारा का समझा-बुझाकर उन्हें अन्तःपुर में ले आना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  4.33.16 
 
 
महेन्द्रदत्तै: श्रीमद्भिर्नीलजीमूतसंनिभै:।
दिव्यपुष्पफलैर्वृक्षै: शीतच्छायैर्मनोरमै:॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  वहाँ देवराज इन्द्र द्वारा प्रदान किए गए दिव्य पुष्पों और फलों से लदे हुए मनोरम वृक्ष लगाए गए थे, जो अत्यंत सुंदर थे और नीले मेघ के समान श्याम थे। इन वृक्षों की शीतल छाया मन को प्रफुल्लित कर देती थी।॥ १६॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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