श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 32: हनुमान जी का चिन्तित हुए सुग्रीव को समझाना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  4.32.22 
 
 
न रामरामानुजशासनं त्वया
कपीन्द्र युक्तं मनसाप्यपोहितुम्।
मनो हि ते ज्ञास्यति मानुषं बलं
सराघवस्यास्य सुरेन्द्रवर्चस:॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  हे कपियों के राजन! श्रीराम और लक्ष्मण के आदेश का आपको मन से भी उल्लंघन नहीं करना चाहिए। इंद्र की तरह तेजस्वी लक्ष्मण सहित श्रीराम के अलौकिक बल के बारे में तो आप जानते ही हैं।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे द्वात्रिंश: सर्ग: ॥ ३ २॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें बत्तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ३ २॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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