वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 32: हनुमान जी का चिन्तित हुए सुग्रीव को समझाना
»
श्लोक 17
श्लोक
4.32.17
कृतापराधस्य हि ते नान्यत् पश्याम्यहं क्षमम्।
अन्तरेणाञ्जलिं बद्ध्वा लक्ष्मणस्य प्रसादनात्॥ १७॥
अनुवाद
play_arrowpause
हाथ जोड़कर लक्ष्मण जी को प्रसन्न करना ही आपके लिये सबसे उचित कर्तव्य है, क्योंकि आपने अपराध किया है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.