श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 32: हनुमान जी का चिन्तित हुए सुग्रीव को समझाना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  4.32.15 
 
 
प्राप्तमुद्योगकालं तु नावैषि हरिपुंगव।
त्वं प्रमत्त इति व्यक्तं लक्ष्मणोऽयमिहागत:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘वानरराज! राजाओंके लिये विजय-यात्राकी तैयारी करनेका समय आ गया है; किंतु आपको कुछ पता ही नहीं है। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि आप प्रमादमें पड़ गये हैं। इसीलिये लक्ष्मण यहाँ आये हैं॥ १५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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