वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 31: सुग्रीव पर लक्ष्मण का रोष, लक्ष्मण का किष्किन्धा के द्वार पर जाकर अङ्गद को सुग्रीव के पास भेजना, प्लक्ष और प्रभाव का सुग्रीव को कर्तव्य का उपदेश देना
»
श्लोक 48
श्लोक
4.31.48
अयं च तनयो राजंस्ताराया दयितोऽङ्गद:।
लक्ष्मणेन सकाशं ते प्रेषितस्त्वरयानघ॥ ४८॥
अनुवाद
play_arrowpause
राजन! हे निष्पाप वानरराज! लक्ष्मण ने तारा देवी के इन प्रिय पुत्र अंगद को आपके निकट बड़ी उतावली के साथ इसलिए भेजा है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.