श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 30: शरद्-ऋतु का वर्णन तथा श्रीराम का लक्ष्मण को सुग्रीव के पास जाने का आदेश देना  »  श्लोक 74
 
 
श्लोक  4.30.74 
 
 
नूनं काञ्चनपृष्ठस्य विकृष्टस्य मया रणे।
द्रष्टुमिच्छसि चापस्य रूपं विद्युद‍्गणोपमम्॥ ७४॥
 
 
अनुवाद
 
  सुग्रीव! निश्चय ही तुम युद्ध में देखना चाहते हो कि जब मैं सोने की पीठ वाले अपने धनुष को खींचूँगा, तो उसकी चमक आकाश में कौंधती हुई बिजली के समान दिखेगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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