श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 30: शरद्-ऋतु का वर्णन तथा श्रीराम का लक्ष्मण को सुग्रीव के पास जाने का आदेश देना  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  4.30.52 
 
 
वनप्रचण्डा मधुपानशौण्डा:
प्रियान्विता: षट्चरणा: प्रहृष्टा:।
वनेषु मत्ता: पवनानुयात्रां
कुर्वन्ति पद्मासनरेणुगौरा:॥ ५२॥
 
 
अनुवाद
 
  जो भ्रमर वन में निर्भयता से विचरण करते हैं, कमल और असन के पराग से अपना रंग गौर कर लेते हैं और पुष्पों के मकरंद का पान करने में निपुण होते हैं, वे अपनी प्रियतमाओं के साथ वन में हर्ष से भरे हुए हैं और वायु के पीछे-पीछे प्रेमलोलुपता से उड़ान भरते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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