श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 30: शरद्-ऋतु का वर्णन तथा श्रीराम का लक्ष्मण को सुग्रीव के पास जाने का आदेश देना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  4.30.46 
 
 
रात्रि: शशाङ्कोदितसौम्यवक्त्रा
तारागणोन्मीलितचारुनेत्रा।
ज्योत्स्नांशुकप्रावरणा विभाति
नारीव शुक्लांशुकसंवृताङ्गी॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  रात्रि अब चाँद की कोमल रोशनी में नहाई हुई है, मानो एक सुन्दर नारी ने अपनी सफेद साड़ी ओढ़ रखी हो। उदित हुआ चन्द्रमा उसके कोमल मुख की तरह है और तारे उसकी चमकदार आँखों की तरह हैं। वह चारों ओर से अपने सफेद आवरण से ढकी हुई है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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