श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 30: शरद्-ऋतु का वर्णन तथा श्रीराम का लक्ष्मण को सुग्रीव के पास जाने का आदेश देना  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  4.30.42 
 
 
व्यपेतपङ्कासु सवालुकासु
प्रसन्नतोयासु सगोकुलासु।
ससारसारावविनादितासु
नदीषु हंसा निपतन्ति हृष्टा:॥ ४२॥
 
 
अनुवाद
 
  चिकनी मिट्टी से रहित, बालू से सुशोभित, स्वच्छ जल वाली और गौओं के झुंडों को तृप्त करने वाली ऐसी नदियों में हंस बड़े हर्ष के साथ उतर रहे हैं जिनके जल में सारसों का कलरव गूंज रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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