श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 30: शरद्-ऋतु का वर्णन तथा श्रीराम का लक्ष्मण को सुग्रीव के पास जाने का आदेश देना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  4.30.37 
 
 
सूर्यातपक्रामणनष्टपङ्का
भूमिश्चिरोद‍्घाटितसान्द्ररेणु:।
अन्योन्यवैरेण समायुताना-
मुद्योगकालोऽद्य नराधिपानाम्॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  धूप के तेज से पृथ्वी की मिट्टी सूख गई है। अब उस पर कई दिनों के बाद गाढ़ी धूल देखने को मिल रही है। एक-दूसरे से वैर रखने वाले राजाओं के लिए युद्ध की तैयारियाँ करने का सही समय आ गया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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