श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 30: शरद्-ऋतु का वर्णन तथा श्रीराम का लक्ष्मण को सुग्रीव के पास जाने का आदेश देना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  4.30.34 
 
 
मनोज्ञगन्धै: प्रियकैरनल्पै:
पुष्पातिभारावनताग्रशाखै:।
सुवर्णगौरैर्नयनाभिरामै-
रुद्योतितानीव वनान्तराणि॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  वन के भीतर बहुत से असन नामक वृक्ष खड़े हैं, जिनकी डालियों के अग्रभाग फूलों के अधिक भार से झुक गये हैं। उन पर मनभावन सुगंध छा रही है। वे सभी वृक्ष सुवर्ण के समान चमकीले हैं और मन को प्रसन्नता प्रदान करते हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके द्वारा वनों का अंत प्रकाशमान हो रहा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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