श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 30: शरद्-ऋतु का वर्णन तथा श्रीराम का लक्ष्मण को सुग्रीव के पास जाने का आदेश देना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  4.30.25 
 
 
जलगर्भा महावेगा: कुटजार्जुनगन्धिन:।
चरित्वा विरता: सौम्य वृष्टिवाता: समुद्यता:॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  सौम्य! जिनके भीतर जल विद्यमान था तथा जिनमें कुटज और अर्जुन के फूलों की सुगन्ध भरी हुई थी, वे अत्यन्त वेगशाली झंझावात उमड़-घुमड़कर सम्पूर्ण दिशाओं में विचरण करके अब शान्त हो गये हैं। जल से भरे हुए वे अत्यंत तेज और प्रबल झंझावात थे जिनमें कुटज और अर्जुन के फूलों की सुगंध भरी हुई थी। वे चारों दिशाओं में घूमते हुए आकाश में उमड़-घुमड़ रहे थे। अब वे शांत हो गए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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