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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 29: हनुमान जी के समझाने से सुग्रीव का नील को वानर-सैनिकों को एकत्र करने का आदेश देना
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श्लोक 14
श्लोक
4.29.14
यो हि कालव्यतीतेषु मित्रकार्येषु वर्तते।
स कृत्वा महतोऽप्यर्थान्न मित्रार्थेन युज्यते॥ १४॥
अनुवाद
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उपयुक्त समय बीत जाने के बाद ही जो मित्र के कार्यों में जुटता है, तो वो बड़े से बड़े काम को भी पूरा करके मित्र की कामना पूर्ण नहीं कर पाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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