श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 28: श्रीराम के द्वारा वर्षा-ऋतु का वर्णन  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  4.28.46 
 
 
नरैर्नरेन्द्रा इव पर्वतेन्द्रा:
सुरेन्द्रदत्तै: पवनोपनीतै:।
घनाम्बुकुम्भैरभिषिच्यमाना
रूपं श्रियं स्वामिव दर्शयन्ति॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  जैसे मनुष्य राजाओं का जल के कलशों से अभिषेक करते हैं, उसी प्रकार इंद्र द्वारा दिए गए और वायुदेव के द्वारा लाए गए मेघरूपी जल-कलशों से जिन पर्वतराजों का अभिषेक हो रहा है, वे अपने निर्मल रूप और शोभा-संपत्ति को दर्शा रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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