श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 28: श्रीराम के द्वारा वर्षा-ऋतु का वर्णन  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  4.28.44 
 
 
मेघा: समुद्भूतसमुद्रनादा
महाजलौघैर्गगनावलम्बा:।
नदीस्तटाकानि सरांसि वापी-
र्महीं च कृत्स्नामपवाहयन्ति॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  मेघ आकाश में गर्जना कर रहे हैं, उनके गर्जन की ध्वनि समुद्र के शोर को भी दबा रही है। उनके जल की विशाल धाराएँ नदियों, तालाबों, झीलों, कुओं और पूरी पृथ्वी को भर रही हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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