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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 28: श्रीराम के द्वारा वर्षा-ऋतु का वर्णन
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श्लोक 38
श्लोक
4.28.38
स्वनैर्घनानां प्लवगा: प्रबुद्धा
विहाय निद्रां चिरसंनिरुद्धाम्।
अनेकरूपाकृतिवर्णनादा
नवाम्बुधाराभिहता नदन्ति॥ ३८॥
अनुवाद
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मेघों की गड़गड़ाहट से सदियों से सोए हुए अनेक रूप, आकार, वर्ण और आवाज़ वाले मेढ़क जाग उठे हैं। नए पानी की धारा के स्पर्श से वे जोर-जोर से टर्राने लगे हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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