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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 28: श्रीराम के द्वारा वर्षा-ऋतु का वर्णन
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श्लोक 30
श्लोक
4.28.30
अङ्गारचूर्णोत्करसंनिकाशै:
फलै: सुपर्याप्तरसै: समृद्धै:।
जम्बूद्रुमाणां प्रविभान्ति शाखा
निपीयमाना इव षट्पदौघै:॥ ३०॥
अनुवाद
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जामुन के पेड़ों की शाखाएँ काले कोयले की तरह हो जाती हैं और बड़े-बड़े रसीले फलों से भर जाती हैं। ऐसा लगता है जैसे उनमें भौंरों का झुंड उड़ रहा हो और वे उस रस का पान कर रहे हों।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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