श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 28: श्रीराम के द्वारा वर्षा-ऋतु का वर्णन  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  4.28.27 
 
 
वहन्ति वर्षन्ति नदन्ति भान्ति
ध्यायन्ति नृत्यन्ति समाश्वसन्ति।
नद्यो घना मत्तगजा वनान्ता:
प्रियाविहीना: शिखिन: प्लवंगमा:॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  नदियां बह रही हैं, बादल पानी बरसा रहे हैं, मतवाले हाथी चिंघाड़ रहे हैं, वन सुन्दर हो रहे हैं, प्रियतमा के मिलन से वंचित हुए विरही प्राणी चिंतित हो रहे हैं, मोर नाच रहे हैं और वानर निश्चिन्त और सुखी हो रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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