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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 28: श्रीराम के द्वारा वर्षा-ऋतु का वर्णन
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श्लोक 24
श्लोक
4.28.24
बालेन्द्रगोपान्तरचित्रितेन
विभाति भूमिर्नवशाद्वलेन।
गात्रानुपृक्तेन शुकप्रभेण
नारीव लाक्षोक्षितकम्बलेन॥ २४॥
अनुवाद
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नवीन घास से आच्छादित धरती बीच-बीच में छोटे-छोटे इंद्रगोप नामक कीड़े से रंगी हुई है, यह उस नारी के समान शोभायमान है जिसने अपने शरीर पर तोते के रंग के समान एक कंबल ओढ़ रखा हो जिसे बीच-बीच में सिंदूर के रंग से रंगकर उसे अद्भुत शोभा प्रदान की गई हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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