श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 27: प्रस्रवणगिरि पर श्रीराम और लक्ष्मण की परस्पर बातचीत  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  4.27.47 
 
 
यथोक्तमेतत् तव सर्वमीप्सितं
नरेन्द्र कर्ता नचिरात् तु वानर:।
शरत्प्रतीक्ष: क्षमतामिमं भवान्
जलप्रपातं रिपुनिग्रहे धृत:॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  हे नरेश्वर! आपने जो कहा है, वह सर्वथा सत्य है। वानरराज सुग्रीव शीघ्र ही आपकी इस अभिलाषा को सिद्ध करेंगे। इसलिए आप शत्रुओं का संहार करने के दृढ़ निश्चय के साथ शरद् ऋतु का इंतज़ार करें और इस वर्षा ऋतु की विलंब को सहन करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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