श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 27: प्रस्रवणगिरि पर श्रीराम और लक्ष्मण की परस्पर बातचीत  »  श्लोक 32-33
 
 
श्लोक  4.27.32-33 
 
 
तत्समुत्थेन शोकेन बाष्पोपहतचेतनम्॥ ३२॥
तं शोचमानं काकुत्स्थं नित्यं शोकपरायणम्।
तुल्यदु:खोऽब्रवीद्‍भ्राता लक्ष्मणोऽनुनयं वच:॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण द्वारा सीता माता के अपहरण के दुःख में अत्यधिक शोक करते हुए प्रभु श्रीराम अचेत हो जाते थे। लक्ष्मण जी भाई श्रीराम को निरंतर शोक में देखकर उनके दुःख में समानरूप से भाग लेते हुए नम्रतापूर्वक उनसे बोले कि -
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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