श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 23: तारा का विलाप  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  4.23.27 
 
 
इष्ट्वा संग्रामयज्ञेन रामप्रहरणाम्भसा।
तस्मन्नवभृथे स्नात: कथं पत्न्या मया विना॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  तूने युद्ध के यज्ञ को करके राम के बाण रूपी जल से स्नान कर लिया, जबकि तू अकेला है और तेरी पत्नी तेरे साथ नहीं है। ऐसे में तूने अपवित्र स्नान कैसे किया?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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