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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 18: श्रीराम का वाली की बात का उत्तर देते हुए उसे दिये गये दण्ड का औचित्य बताना,वाली का अपने अपराध के लिये क्षमा माँगते हुए अङ्गद की रक्षा के लिये प्रार्थना करना
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श्लोक 63
श्लोक
4.18.63
त्यज शोकं च मोहं च भयं च हृदये स्थितम्।
त्वया विधानं हर्यग्रॺ न शक्यमतिवर्तितुम्॥ ६३॥
अनुवाद
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हे वानरश्रेष्ठ! अपने हृदय में स्थित शोक, मोह और भय को त्याग दो। तुम दैव के विधान को नहीं लाँघ सकते।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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