श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 18: श्रीराम का वाली की बात का उत्तर देते हुए उसे दिये गये दण्ड का औचित्य बताना,वाली का अपने अपराध के लिये क्षमा माँगते हुए अङ्गद की रक्षा के लिये प्रार्थना करना  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  4.18.48 
 
 
मामप्यवगतं धर्माद् व्यतिक्रान्तपुरस्कृतम्।
धर्मसंहितया वाचा धर्मज्ञ परिपालय॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
 
  धर्मज्ज्ञ! मैं धर्म के मार्ग से भटक गया हूँ और इसी कारण से मेरी सर्वत्र बदनामी है, फिर भी आज मैं आपकी शरण में आया हूँ। अपनी धर्म के सार तत्वों से भरी वाणी से आज मेरी भी रक्षा करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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