वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 17: वाली का श्रीरामचन्द्रजी को फटकारना
»
श्लोक 35
श्लोक
4.17.35
हत्वा बाणेन काकुत्स्थ मामिहानपराधिनम्।
किं वक्ष्यसि सतां मध्ये कर्म कृत्वा जुगुप्सितम्॥ ३५॥
अनुवाद
play_arrowpause
काकुत्स्थ! मैं सर्वथा निरपराध था। इसके बावजूद यहाँ बाण से मुझे मारने का यह घृणित कर्म करके सज्जनों के बीच तुम क्या कहोगे अर्थात अपना मुँह कैसे दिखाओगे?
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.