श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 17: वाली का श्रीरामचन्द्रजी को फटकारना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  4.17.35 
 
 
हत्वा बाणेन काकुत्स्थ मामिहानपराधिनम्।
किं वक्ष्यसि सतां मध्ये कर्म कृत्वा जुगुप्सितम्॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  काकुत्स्थ! मैं सर्वथा निरपराध था। इसके बावजूद यहाँ बाण से मुझे मारने का यह घृणित कर्म करके सज्जनों के बीच तुम क्या कहोगे अर्थात अपना मुँह कैसे दिखाओगे?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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