श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 17: वाली का श्रीरामचन्द्रजी को फटकारना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  4.17.33 
 
 
त्वं तु कामप्रधानश्च कोपनश्चानवस्थित:।
राजवृत्तेषु संकीर्ण: शरासनपरायण:॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम कामुक हो, क्रोधी हो और न्याय के मार्ग से भटकते हो। तुम राजा के धर्मों का पालन नहीं करते और अवसर की परवाह किए बिना उनका प्रयोग करते हो। तुम इधर-उधर घूमते रहते हो और जहाँ चाहो वहाँ बाण चलाते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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