श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 14: वाली-वध के लिये श्रीराम का आश्वासन पाकर सुग्रीव की विकट गर्जना  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  4.14.14-15 
 
 
अनृतं नोक्तपूर्वं मे चिरं कृच्छ्रेऽपि तिष्ठता॥ १४॥
धर्मलोभपरीतेन न च वक्ष्ये कथंचन।
सफलां च करिष्यामि प्रतिज्ञां जहि संभ्रमम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘मैंने बहुत कठिनाइयाँ झेली हैं, लेकिन मैंने कभी झूठ नहीं बोला है। धर्म के प्रति मेरा प्रेम है और इसलिए मैं कभी भी झूठ नहीं बोलूँगा। मैं अपने वचन को पूरा करूँगा। इसलिए तुम अपने दिल से डर और घबराहट को निकाल दो।’
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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